आसन लगाने (Yogic Asana) से कुपथ्यजन्य रोग (Disease By intake of food or Acquired) तो होते ही नहीं और प्रारब्धजन्य रोगों (Disease already existing in the body or inherited ) में भी उतनी तेजी नहीं रहती, क्योंकि आसन और व्यायाम को भी कर्म (Action) ही माना जाता है। अतः उनका भी फल (Fruit) होता है।
व्यायाम में मांसपेशियाँ (Muscles) दृढ़ (Strong) और कठोर (Hardening) हो जाती हैं। शरीर वयस्क अवस्था में तो अच्छा रहता है मगर वृद्ध अवस्था में सन्धियों में पीड़ा (Joint Pain) होने लगती है। आसन लगाने से मांसपेशियाँ लचकदार (Elasticity of Muscles) और मृदु (Softening) हो जाती हैं। आसन करने से नाड़ियों (Arteries) में रक्त प्रवाह (Blood Circulation) अच्छा रहता है, जिससे शरीर नीरोग (Healthy) रहता है।
वृद्धावस्था में भी सूक्ष्म (हलके) आसन (Mini & Light) किये जा सकते हैं। जिससे शरीर में स्फूर्ति (Activeness) और हल्कापन (Weightless) बना रहता है।