ये वाक्य स्वतः ही विचित्र सुनाई देता है क्योंकि महाभारत के सन्दर्भ में जो भी कोई वार्तालाप करता है वो पाण्डवों तथा कौरवों में भेद इसी नाम से करता है।
सभी ग्रन्थों यहाँ तक कि श्रीमद् भगवद्गीता में भी इस भेद का प्रयोग किया जाता है।
परन्तु क्या आप जानते हैं कि वास्तव में पाण्डव भी कौरव ही थे।
इस तथ्य को भलि भाँति समझने के लिये हमें कौरव शब्द के अर्थ को जानना होगा। कौरव शब्द का अर्थ है कुरु के वंशज। कुरु वैदिक काल का वंश माना जाता है जिसके एक राजा का नाम कुरु था। इसी कुरु राजा की संतानों तथा अगली पीढ़ीयों में महाराज शान्तनु का जन्म हुआ जो कि भीष्म के पिता थे। वो विवाहित नहीं थे परन्तु शान्तनु की दूसरी पत्नी सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की पत्नियों के गर्भ से धृतराष्ट्र तथा पाण्डु उत्पन्न हुये। यहाँ तक इन सभी को कौरवों के नाम से जाना जाता है।
आगे चल कर धृतराष्ट्र के पुत्रों तथा पाण्डु के पुत्रों के मध्य में घृणा पैदा होने के कारण वो बन्धु होकर भी एक दूसरे के शत्रु बन गये। यहीं से धृतराष्ट्र के पुत्रों के कौरव क्योंकि वो हस्तिनापुर के राज में ही रहे तथा पाण्डु के पुत्रों को पाण्डव नाम से जाना जाने लगा।
कथा-कहानियों में प्रायः नाम तथा शब्दों के अर्थ मत-भेद तथा दुविधा उत्पन्न कर देते हैं।
पाण्डव भले ही भिन्न नाम से विख्यात हुये, मूल रूप में वो भी कौरव ही थे।