महाभारत महाकाव्य के अनेक पात्रों के नाम दन्त कथाओं के प्रचलन से वास्तविक नामों से भिन्न हो गये हैं। कुछ नाम ऐसे हैं जो उन पात्रों के कृत्यों के कारण परिवर्तित हो गये हैं।
सुयोधन का नाम दुर्योधन हो गया।
सुशासन का नाम दुशासन हो गया।
कुछ पात्रों के वास्तविक नाम ज्ञात ही नहीं होते जब तक गूढ़ अध्ययन ना किया जाये। इसी वर्ग में द्रौपदी का नाम भी आता है।
द्रौपदी भिन्न भिन्न नामों से जानी जाती थी। पाञ्चाली उसमें से एक है। इस नाम का अर्थ साधारण रूप में अशुद्ध ही लिया जाता है। लोग सोचते हैं कि पाञ्चाली का अर्थ है पाञ्च पतियों वाली पत्नी जो कि सर्वदा अनुचित है। पाञ्चाली का अर्थ है पाञ्चाल नरेश की पुत्री–ये नाम उसके नगर जिसके राजा उसके पिता थे के कारण पड़ा। जैसे सीता के पिता राजा जनक मिथिला के नरेश थे इसी लिये सीता को मैथिलि भी कहते हैं।
इसी प्रकार द्रौपदी नाम भी उसके पिता के नाम से ही पड़ा था। उसके पिता का नाम द्रुपद था। इस लिये उसका नाम द्रौपदी पड़ा।
पर द्रौपदी का वास्तविक नाम क्या था जो उसके जन्म उपरान्त रखा गया था। उसका नाम कृष्णा था। वो यज्ञ की अग्नि से उत्पन्न हुई थी तथा उसका रूप आकर्षक था। इस लिये उसका नाम कृष्णा रखा गया।
यहाँ वर्णन योग्य है कि अर्जुन के अनेक नामों में से एक कृष्ण था और महाभारत महाकाव्य के ये युगल नायक नायिका दोनों ही अपने नाम को यथार्थ करते हुये श्री कृष्ण के प्रिय थे।