भारतीय ज्योतिष एक शास्त्र से कम नहीं है तथा पूर्ण रूप से वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है। इस लेख में हम एक ऐसे उदाहरण का वर्णन करेंगे जो कि रामायण काल में हुआ था तथा यथार्थ सत्य सिद्ध हुआ था।
भगवान् श्रीरामचन्द्र जी के वनवास के समय रावण ने सीता का अपहरण किया। श्रीरामचन्द्र जी लक्ष्मण के साथ सीता का अन्वेषण करते हुये जटायु के पास आये थे। जटायु के मुँह से रक्त्त निकल रहा था। उसे देखकर श्रीरामचन्द्र जी ने अनुमान किया कि जटायु ने ही सीता का संहार किया है, तब वे बहुत क्रुद्ध थे।
तं दीनतीनया वाचा सफेनं रुधिरं वमन्।
अभ्यभाषत पक्षी स रामं दशरथात्मजम्।।
यामोषधीमिवायुष्मन्नन्वेषसि महावने।
सा देवी मम च प्राणा रावणेनोभयं हृतम्।।
त्वया विरहिता देवी लक्ष्मणेन च राघव।
ह्रियमाणा मया दृष्टा रावणेन वलीयसा।।
सीतामभ्यवपन्नोऽहं रावणश्च रणे प्रभो।
विध्वंसितरथच्छत्रः पतितो धरणीतले।।
रक्षसा निहतं पूर्वं मां न हन्तुं त्वमर्हसि।। (वा0रा0 3।67।14-17,20)
तब जटायु ने कहा – ‘हे राम! रावण ने सीता का अपहरण किया है। मैंने उसे देखते ही सीता को बचाने के लिये रावण से युद्ध किया। उसके रथ को गिराया। उसके धनुष और बाणों के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। उसके सारथी को मार डाला। जब मैं थक गया था, तब रावण ने खड्ग से मेरे दोनों पक्षों को काट डाला। इस लिये मैं तुम्हारा उपकारक हूँ। मुझे मत मारो।‘ यह सुनकर श्रीरामचन्द्र जी बहुत खिन्न हुये और जटायु को गले लगाकर रोये।
तब जटायु ने कहा –
येन याति मुहूर्तेन सीतामादाय रावणः।
विप्रणष्टं धनं क्षिप्रं तत्स्वामी प्रतिपद्यते।।
विन्दो नाम मुहूर्तोऽसौ न च काकुत्स्थ सोऽबुधत्। (वा0रा0 3।67।12-13)
जिस मुहूर्त में रावण ने सीता का अपहरण किया है, उसका नाम ‘विन्द’ हैं। उस मुहूर्त में जो कुछ भी वस्तु अपहृत हो, वह उसके स्वामी को अवश्य मिलेगी, लेकिन सीतापहरण के समय में रावण को यह नहीं सूझा था। इससे यह ज्ञात होता है कि विन्द नामक मुहूर्त में अपहृत वस्तु उसके स्वामी को अवश्य प्राप्त होती है।
मुहूर्त माने दो घटी हैं। दिन में पन्द्रह मुहूर्त होते हैं –
रौद्रः श्वेतश्च मैत्रश्च तथा सारघटः स्मृतः।
सावित्रो वैश्वदेवश्च गान्धर्वः कुतपस्तथा।।
रौहिणस्तिलकश्चैव विजयो नैर्ऋतस्तथा।
शम्बरो वारुणश्चैव भगः पञ्चदशः स्मृतः।।
इनमें ग्यारहवाँ मुहूर्त जो विजय नाम से कहा गया है, उसी को विन्द कहते हैं। जटायु का यह वचन सत्य हो गया। भगवान् ने सीता को एक साल के अन्दर ही प्राप्त कर लिया।
(गीता प्रैॅस द्वारा प्रकाशित कल्याण पत्रिका से लिया गया)