महाभारत के प्रथम खण्ड अनुसार जब कुरु राजकुमार बड़े होने लगे तो उनकी आरम्भिक शिक्षा का भार राजगुरु कृप के पास गया। उन्हीं से कुरु राजकुमारों ने धनुर्वेद की शिक्षा ग्रहण की
धनुर्वेद के भेद चार हैं
- मुक्त्त– जो बाण छोड़ दिया जाये उसे ‘मुक्त्त’ कहते हैं
- अमुक्त्त–जिस अस्त्र को हाथ में लेकर प्रहार किया जाय जैसे खड्ग आदि को ‘अमुक्त्त’ कहा जाता है
- मुक्त्तामुक्त्त–जिस अस्त्र को चलाने और समेटने की कला ज्ञात हो, उस अस्त्र को ‘मुक्त्तामुक्त्त’ कहा जाता है
- मन्त्रमुक्त्त–जिस अस्त्र को मन्त्र पढ़कर चला तो दिया जाये किन्तु उसके उपसंहारकी विधि मालुम न हो, उस अस्त्र को ‘मन्त्रमुक्त्त’ कहा गया है
धनुर्वेद के और भी भेद हैं
- शस्त्र
- अस्त्र
- प्रत्यस्त्र
- परमास्त्र
धनुर्वेद कि क्रियाओं से भी भेद हैं
- आदान
- संधान
- विमोक्ष
- संहार