हमारे ऋषि-मुनियों ने ठोस वैज्ञानिक आधार पर सप्ताह के वारों का क्रम निर्धारित किया है । पृथ्वी और सूर्य से घनिष्ठ सम्बन्ध रखने वाले सात ग्रहों की कक्षाओं के अनुसार सात वार निश्चित किये गये हैं, जो सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित हैं। वार शब्द ( वासर ) दिन का ही संक्षिप्त रूप है। एक अहोरात्र से ही होरा शब्द लिया गया है, जो कालमान की एक छोटी इकाई है। होरा एक अहोरात्र का 24वाँ भाग होता है, जिसे अँगरेजी में ऑवर्स कहते हें। दिन-रात में 24 घण्टे होते हैं। अत: एक होरा एक घण्टे अथवा 2.1/2 घटी के बराबर होता है। इसी होरा से वारों की गणना प्रारम्भ हुई। यह उल्लेखनीय है कि भारतीय ज्योतिष में सम्पूर्ण गणना पृथ्वी को केन्द्र मानकर की गयी है, जब कि वास्तव में सौर-परिवार का केन्द्र सूर्य है, जिस के चारों ओर अपनी-अपनी कक्षाओं में पृथ्वी सहित समस्त ग्रह परिक्रमण करते हैं, पर भारतीय ज्योतिष दृश्य-स्थिति को स्वीकारता है। पृथ्वी से देखने पर विभिन्न राशियों में से अन्य ग्रहों की भाँति सूर्य भी परिक्रमण करता हुआ प्रतीत होता है। अत: सूर्य को भी ज्योतिर्विज्ञान में एक ग्रह मान लिया गया है। अन्तरिक्ष में ग्रहों की कक्षाओं की वास्तविक स्थिति निम्न प्रकार है-
सूर्य, बुध, शुक्र, पृथ्वी, मङ्गल, गुरु, शनि।
वास्तव में यही कक्षा-क्रम सप्ताह के वारों के क्रम का आधार है। सृष्टि के प्रारम्भिक दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा रविवार को प्रात: समस्त ग्रह मेष राशि के प्रारम्भिक भाग अश्विनी नक्षत्र पर थे, जैसा कि ‘कालमाधव-ब्रह्मपुराण’ की निम्न पङ्क्तियों से प्रमाणित होता है-
चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि।
शुक्लपक्षे समग्रे तत्तदा सूर्योदये सति।।
प्रवर्तयामास तदा कालस्य गणनामपि।
ग्रहान्नागानृतून्मासान् वत्सरान्वत्सराधिपान्।।
उस दिन से गणना कर भारतीय ज्योतिर्विदों ने सौर-मण्डल का केन्द्र होने के कारण सूर्य की प्रथम होरा का स्वामी माना। तत्पश्चात् ग्रहों के दृश्य-कक्षानुसार द्वितीय एवं तृतीय होरा का स्वामी क्रमश: शुक्र और बुध को स्वीकारा। चन्द्र का मानवजीवन में महत्त्व होने के कारण उपग्रह होते हुये भी उसे चतुर्थ होरा का अधिपति माना। तत्पश्चात् बायीं क्षितिज से दाहिनी क्षितिज की ओर बढ़ते हुये पञ्चम होरा का स्वामी शनि, छठी होरा का स्वामी गुरु तथा सातवीं होरा का स्वामी मङ्गल को स्वीकार किया। इस प्रकार इन सातों ग्रहों को होरा का अधिपति मानकर प्रत्येक दिन सूर्योदय के समय जिस ग्रह की होरा होती है, उस दिनका नाम उस ग्रह के नाम पर रख दिया गया। चूँकि एक अहोरात्र में 24 घन्टे होते हैं अर्थात् 24 होरा होती हैं, अत: दूसरे दिन का नाम 24वीं होरा के अधिपति के नाम पर रख दिया गया तथा 24वीं होरा के स्वामी के नाम पर तृतीय वार का नाम रख दिया गया। इसी क्रम से सातों वारों का नामकरण-संस्कार एवं क्रम का निर्धारण हुआ। सूर्य से गणना करने पर 24वीं होरा का स्वामी चन्द्र होता है, अत: रविवार से अगला दिन सोमवार हुआ। सोमवार की होराओं की गणना करने पर 24वीं होरा का स्वामी मङ्गल आता है। इसी क्रम से सातों वारों का क्रम एवं नाम का निर्धारण किया गया।
(गीता प्रैॅस द्वारा प्रकाशित कल्याण के एक अङ्क से लिया गया)