इस लेख का शीर्षक पढ़ कर आपको आश्चर्य हुआ होगा। मन्थरा दासी का रावण की मृत्यु से क्या संबन्ध। यदि आप रामायण का अध्ययन करते हैं या रामायण को टी.वी. पर प्रसारित धारावाहिकों में देखते हैं तो आप को ज्ञात हो जायेगा कि मन्थरा के उकसाने पर ही कैकयी ने दशरथ से वो दो वर माँगे जिससे कि अयोध्या का राज्य भरत को तथा राम को 14 वर्षों का वनवास प्राप्त हुआ।
गूढ़ अध्ययन से पता चलता है कि कैकयी राम को भरत से भी अधिक प्रेम करती थी। तो ये कैसे संभव हुआ कि अपने प्रिय पुत्र के लिये ही कैकयी ने वनवास माँग लिया।
मन्थरा कैकयी के साथ ही विवाहोपरान्त उसके साथ अयोध्या आयी थी। वो स्वार्थ भाव से पूर्ण थी तथा केवल कैकयी का ही हित चाहती थी। न्याय अथवा धर्म सङ्गत बातों से उसने कुछ नहीं लेना था। उसका एकमात्र मन्तव था कि कैकयी की कोख से जन्मा पुत्र ही अयोध्या का राजा बने। इसी मन्तव के चलते उसने कैकयी के मन में स्वार्थपूर्ण विचारों की आँधी सी चला दी। कैकयी अपने मातृत्व धर्म तथा राम के प्रति अपने स्नेह को भूलकर उस स्वार्थ के चक्रव्यूह में उलझ गई।
परन्तु इन परिस्थितियों को यदि एक अन्य दृश्टिकोण से देखा जाये तो ये पता चलता है कि यहीं से रावण की विनाश का अङ्कुर फूटता है। विश्व कल्याण हेतु भगवान राम वन गमन करते हैं तथा ऋषियों को राक्षसों के भय से मुक्त कर रावण का वध करते हैं।
सरस्वती माता की आरती में एक पङ्क्ति में इस का आख्यान भी है।
पैठि मन्थरा दासी रवण संहार किया। (कहीं कहीं असुर संहार भी प्रयोग किया जाता है)
ओम् जय सरस्वती माता।।
इस पङ्क्ति से ज्ञात होता है कि सरस्वती माता जो कि वाक शक्ति हैं ने मन्थरा दासी को वो स्वार्थ भरे शब्द उच्चारण के लिये प्रेरित किया जिसके चलते सारे घटनाक्रम के बाद रावण का संहार हुआ।
आध्यात्मिक वार्तालाप में प्रायः ये वाक्य दोहराया जाता है कि प्रत्येक छोटी से छोटी घटना के पीछे प्रभु का कुछ अदृश्य कार्य निहित होता है। मन्थरा के उकसाये जाने में, कैकयी के वो श्राप सामान्य वर माँगे जाने में, राम के वन गमन में तथा सीता हरन के पीछे संसार कल्याण हेतु कुछ कार्य छुपा हुआ था। मन्थरा ने राम को वनवास नहीं भिजवाया अपितु निमित्त बनकर रावण संहार करवाया।