बाल्यकाल से ही हमारे मन में ये छवि बन जाती है कि महाभारत का अर्थ वो भयानक युद्ध ही है जिसमें संसार भर के योद्धाओं ने भाग लिया तथा लगभग सभी के सभी मृत्यु को प्राप्त हो गये।
सामान्य वार्तालाप में ये कथन प्रायः ही प्रयोग किया जाता है कि वहाँ तो महाभारत चल रही है जिसका अभिप्राय ये होता है कि लड़ाई झगड़ा इत्यादि घट रहा है।
परन्तु यदि आप कभी महाभारत ग्रंथ को पढ़ें तो आपको ज्ञात होगा कि इस शब्द की उत्पत्ति इस ग्रंथ के महत्व को दर्शाने हेतु हुई थी। महाभारत तथा महाभारत के युद्ध में अन्तर है।
महाभारत ग्रंथ का नाम उसकी महिमा दर्शाता है।
इस श्लोक को देखें। ये महाभारत ग्रंथ से ही लिया गया है।
पुरा किल सुरैः सर्वैः समेत्य तुलया धृतम्।
चतुर्भ्यः सरहस्येभ्यो वेदेभ्यो ह्यधिकं यदा।।
तदा प्रभृति लोकेऽस्मिन् महाभारतमुच्यते।
महत्त्वे च गुरुत्वे च ध्रियमाणं यतोऽधिकम्।।
ये कहता है…
प्राचीन काल में सब देवताओं ने इकट्ठे होकर तुला के एक पलड़े पर चारों वेदों को और दूसरे पलड़े पर इसे रखा। परन्तु जब यह रहस्यसहित चारों वेदों की अपेक्षा अधिक भारी निकला तभी से संसार में यह महाभारत के नाम से जाना जाने लगा।
क्या आप मान सकते हैं कि महाभारत ग्रन्थ वेदों के तुल्य माननीय तथा पूजनीय है। इस शब्द का गूढ़ अर्थ समझने के उपरान्त इस शब्द को केवल लड़ाई झगड़े को दर्शाने हेतु ना करें अपितु इसके महत्व को ध्यान में रख कर करें।