वातावरण की रक्षा हेतु वृक्ष लगाना, विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक तत्त्वों का अल्प प्रयोग तथा प्रदूषण को बढ़ावा ना देना ये सब आधुनिक जीवन की ही कल्पनायें नहीं है। पुरातन काल से प्रकृति के संरक्षण हेतु चेष्टा की जाती रही है तथा समाज में ऐसे कार्यों को करने की प्रेरणा दी जाती रही है जिससे मनुष्यता द्वारा प्रकृति का हनन ना हो।
ऐसा ही एक कार्य है वृक्ष लगाना जिसकी महिमा शिव महापुराण में भी दी गयी है। इस पूजनीय ग्रन्थ में कहा गया है कि–
जो वीरान एवं दुर्गम स्थानों में वृक्ष लगाता है, वह अपनी बीती तथा आने वाली सम्पूर्ण पीढ़ियों को तार देता है। इस लिये वृक्ष अवश्य लगाना चाहीये।
अतीतानागतान् सर्वान् पितृवंशास्तु तारयेत्।
कान्तारे वृक्षरोपी यस्तस्माद् वृक्षांस्तु रोपयेत्।।
ये वृक्ष लगाने वाले के पुत्र होते हैं, इस में संशय नहीं है। वृक्ष लगाने वाला पुरुष परलोक में जाने पर अक्षय लोकों को पाता है। पोखरा खुदानेवाला, वृक्ष लगानेवाला और यज्ञ कराने वाला जो द्विज है, वह तथा दूसरे-दूसरे सत्यवादी पुरुष – ये स्वर्ग से कभी नीचे नहीं गिरते।
इस उपरोक्त श्लोक से ज्ञात होता है कि आध्यात्मिक रूप से भी वृक्ष लगाना लाभदायक माना जाता है। सर्वथा हम समझ सकते हैं कि प्रकृति तथा आध्यात्म एक दूसरे के साथ संलग्न है तथा भिन्न नहीं हैं।
अाओ हम सब प्रयास करें तथा अधिक से अधिक वृक्ष लगायें तथा अपने पर्यावरण की रक्षा करें।
(इस लेख का कुछ भाग गीता प्रैॅस द्वारा प्रकाशित शिव महापुरण से लिया गया है)