जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये धन अवश्य अर्जित करना चाहिये। सङ्कट समय के लिये बचत भी अवश्य करनी चाहिये। धन की तीन गतियाँ है। दान, भोग और नाश। अधिक धन की लालसा में अपना सुख व शान्ति नष्ट न करें। आय से अधिक व्यय करने से अशान्ति होना सम्भव है।
स्वस्थ रहें (Be Healthy) – शरीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहना और सदा सक्रिय रहना हितकारी है। प्रात:- सायं भ्रमण, शरीरिक परिश्रम, प्रकृति-प्रेम और भोजन में संयम जीवन कला के चार स्वस्थ स्तंभ हैं। पालन करें। क्रोध, चिन्ता, विषाद, तनाव, निराशा, अहंकार आदि दोषों से बचें और मानसिक रूप से स्वस्थ रहें। कहते हैं- ‘पहला सुख निरोगी काया’।
आशावादी बनें (Be Optimistic)– आशावादी कामना से सफलता प्राप्त होती है और भविष्य उज्जवल होता है। आशा और उत्साह प्रगति का और निराशा गिरावट की प्रतीक है। मनोबल सदृढ़ रखें। स्मरण रखें- ‘मनके हारे हार है। मन के जीते जीत’।।
भूलें और क्षमा करें (Forget and Forgive) – मतभेद एक प्राकृतिक अंश है। इस से तनाव में न आयें। अप्रिय बातों को भूल जाना, क्षमा करना और अपनी गलतियों पर क्षमा माँग लेना सर्वोत्तम नीति मानी गई है।
परोपकारी बनें ( Be Benevolent) – निर्धन, अपाहिज, रोगी की यथाशक्त्ति सहायता करना परम धर्म है। रामचरितमानस में लिखा है- परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं।।