यदि आपने हिन्दी पढ़ी है तथा संस्कृत भाषा को सीखने में भी थोड़ा-बहुत समय बिताया है तो हो सकता है आपने अनुस्वार के प्रयोग पे कुछ ध्यान दिया हो।
अनुस्वार का प्रयोग हिन्दी भाषा में इस प्रकार व्यापक्ता से होने लगा कि पाञ्च व्यञ्जनों को दर्शाने के लिये केवल अनुस्वार को ही डाला जाने लगा।
ये पाञ्च व्यञ्जन इस प्रकार हैं–ङ, ञ, ण, न तथा म
इनमें से पहले तीन ऐसे व्यञ्जन हैं जिनसे हिन्दी भाषा में कोई भी शब्द नहीं बनता। इनमें से पहले दो का प्रयोग तो केवल आधे अक्षर के रूप में ही होता है। परन्तु इनको डालने तथा टाईप करने से बचने के लिये केवल अनुस्वार या बिन्दु का प्रयोग किया जाने लगा।
ऐसा करने से कोई कठिनायी ना उत्पन्न होती यदि शब्दों के उच्चारण में भ्राँतियाँ आती। अनुस्वार या बिन्दु के इस सर्वव्यापक प्रयोग से शब्दों का अनुपयुक्त उच्चारण आरम्भ हो गया।
संस्कृत शब्द को ही ले लें–जब इस शब्द को अङ्ग्रेज़ी भाषा में अनुवादित किया जाता है तो इसके अक्षर विन्यास Sanskrit के रूप में प्रयोग किया जाता है जब कि इसका सत्य रूप ऐसा होना चाहिये–Samskrit.
ध्यान देने वाली बात ये है कि अनुस्वार का उच्चारण म अक्षर के आस-पास का होता है परन्तु हिन्दी भाषा में इसके विकृत प्रयोग के कारण शब्दों का अनुपयुक्त रूप सामने आया है।
हंस जो कि अङ्ग्रेज़़ी भाषा में Hamsa लिखा जाना चाहिये था वो Hansa लिखा जाता है। ये उच्चारण केवल अङ्ग्रेज़ी भाषा ही नहीं बल्कि हिन्दी भाषा में भी अनुपयुक्त ही होता है।
आधुनिक युग में जब कंपयूटर का प्रयोग होने लगा तथा हिन्दी भाषा के लिये फ़ोंट की रचना हुई तो युनीकोड में उपलब्ध मङ्गल फ़ोंट में भी ये उपलब्धता नहीं थी–प्रयोक्तागणों को अनुस्वार का ऐसे ही प्रयोग करना पड़ता था। परन्तु एरियल ऐमऐस युनीकोड परिवार के फ़ोंट्स में इन व्यञ्जनों को उचित रूप में दर्शाने का सामर्थ्य प्रदान किया गया।
मोबाइल में हिन्दी के यथार्थ रूप का प्रयोग तथा प्रस्तुति में कोई असमानता नहीं होती। जिस रूप में शुद्ध हिन्दी का प्रयोग होना चाहिये उसी प्रकार मोबाइल में हिन्दी को दर्शाया जाता है।
इस लेख के माध्यम में मैं यही कहना चाहता हूँ कि जितना हो सके अनुस्वार का प्रयोग उचित रूप में ही करें।
उदाहरण के रूप में कुछ शब्द
- रङ्ग को ऐसे लिखें रंग के रूप में नहीं।
- लङ्का को ऐसे लिखें लंका के रूप में नहीं।
- गङ्गा को एेसे लिखें गंगा के रूप में नहीं।
- व्यञ्जन को एेसे लिखें व्यंजन के रूप में नहीं।
- दण्ड को ऐसे लिखें दंड के रूप में नहीं।
- सम्पादन को एेसे लिखें संपादन के रूप में नहीं।
- हिन्दी को ऐसे लिखें हिंदी के रूप में नहीं।