मुझे पता है आप इस लेख को पढ़ने के लिये क्यों आये हैं। इस लेख का शीर्षक आपको यहाँ तक ले आया है। चिर काल से मनुष्य जाति की ये मनोस्थिति रही है कि कैसे दूसरों के चरित्र को जानने का कोई ढङ्ग ढूँढा जाये। स्त्रियों के चरित्र को लेकर तो कोई भी कुछ भी लिख दे वो पाठकों की रुचि तो जगा ही लेगा।
विश्व भर में प्रसिद्ध कई प्रकार की बेकार तथा निर्रथक अवधारणाओं से परे हम कुछ सभ्य वार्तालाप करने का यत्न करेंगे।
तो क्या बताता है स्त्री चरित्र के बारे में
मेरे विचार में वो ही सभी चीज़ें जो एक पुरुष के बारे में बताती हैं वही सभी स्त्रियों के बारे में भी बताती हैं।
- एक स्त्री कैसे दूसरे के साथ व्यवहार करती है। वो जानती है कि दूसरों की सहायता करना ही सबसे बड़ा सुख है।
- एक स्त्री जो स्वार्थ-भाव नहीं रखती।
- एक स्त्री कैसे अपनी त्रुटियों को पहचानती है तथा उनको दूर करने या मिटाने का यत्न करती है।
- एक स्त्री कैसे अपने घर-परिवार, सहेलियों तथा सगे-संबन्धियों में प्रेम-भाव से विचरती है।
- एक स्त्री जो अहंकार रहित होने की चेष्टा में रत है।
- एक स्त्री जो दूसरों का आदर करना जानती है।
- एक स्त्री जो जीवन के मूल्यों को धारण करके आगे बढ़ती है तथा अपने आप से ही प्रतिस्पर्धा करती है।
- एक स्त्री जो क्षमा करना जानती है।
- एक स्त्री जो भय मेंं नहीं जीना चाहती।
- एक स्त्री जो दूसरों के गुणों का सम्मान करती है तथा ईर्ष्या से कोई नाता नहीं रखना चाहती।
मेरे मायने में ऊपर दिये गये 10 बिन्दु बहुत कम रहेंगे किसी का भी चरित्र जानने के लिये भले ही वो एक स्त्री हो या एक पुरुष हो। और ना ही ये 10 बिन्दु किसी भी प्रकार से ‘केवल यही’ या ‘अनन्य’ की श्रेणी में आते हैं। वास्तव में किसी के चरित्र के लिये मापदण्ड निश्चित करना एक व्यर्थ चेष्टा है। परन्तु कुछ मापदण्ड ऐसे होते हैं जो हमें चरित्र दर्शन ना पर चरित्र की एक छवि तो दिखा ही जाते हैं।
यदि आप सहमत हैं तो अपना मत अवश्य दें।