Social Security Bond: Yagyopveet Sanskar (यज्ञोपवीत संस्कार) ਜਨੇਊ ਪਹਿਨਣਾ
जन्म के दो रूप हैंः जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् दवि्ज उच्यते।
शरीर-जन्म (Birth of animal body) की वृत्ति जीव-जन्तुओं जैसी ही होती है। यह शरीर माता-पिता से मिलता है।
मनुष्य जन्म (Entry into social man) में प्रवेश करने के लिय आदर्शवादी प्रतिज्ञा धारन करना आवश्यक है। इसी को दवि्जत्व या दुसरा जन्म कहते हैं। इसी को यज्ञोपवीत संस्कार के नाम से जाना जाता है।
यज्ञोपवीत में तीन लड़ें (Ropes) होती हैं। प्रत्येक लड़ में तीन धागे होते हैं। इस में तीन गाँठों (knots) को तीन व्याहृतियाँ माना गया है। यह भूः भुवः स्वः हैं। बड़ी ब्रह्म ग्रन्थि ऊँकार को ही मानते हैं।
यज्ञोपवीत धारण का व्रत बन्ध (Take an oath) या सूत्र मनुष्य के उत्थान (Elevation) के लिये आवश्यक है। नौ धागों का बना यज्ञोपवीत नौ गुणों का प्रतीक होता है।
नौ शब्दों के इस गायत्री मंत्र में र्पूण मनुष्य तथा समाज का विकास (Development ) व सुरक्षा (Security) भरी पड़ी है।
यह इस प्रकार हैंः-
तत् – जन्म और मृत्यु के ताने-बाने उपर परमात्मा के जीवन्त अनुशासन (Discipline) का प्रतीक (Represents) है।
सवितुर् – शक्त्ति विकास क्रम को चलाने का यह शक्त्ति उत्पादक केन्द्र (Centre of Energy generating) सविता को ही माना जाता है।
वरेण्यं – श्रेष्ठता का वरण (Adoption of goodness), आदर्श-निष्ठा (Ideal commitment), सत्य (Truthfulness), न्याय (Justice), सत्यनिष्ठा (Honesty) के भाव फलित हों।
भर्गो – मन्यु साहस का उभरना (Courageousness) और निर्मलता (Clarity), निर्भयता (Fearlessness) का फलित होना ही विकारनाशक (Destroyer of Evils) तेज के गुण हैं।
देवस्य – सतोंष (Satisfaction), शान्ति (Peace), निस्पृहता, संवेदना (Sensitivity) व करुणा (Compassion) आदि दिव्यतावर्दध्क गुणो को फलित करता है।
धीमहि – विकास और समृध्दिरूप जैसे सद्गुण धारण करने को फलित करता है।
धियो – समझदारी (Understanding), विचारशीलता (Thought), निर्णायक क्षमता (Decisive Power) आदि गुणो का संवर्दध्क है। दिव्य मेधा, विवेक को दर्शाता है।
यो नः – संयम, दिव्य अनुदानों का सुनियोजन करने का प्रतीक है। धैर्य, ब्रह्मचर्यादि (Celibacy) का उन्नायक भी है।
प्रचोदयात् – सत्कर्त्तव्य निष्ठा, दिव्य प्रेरणा, आत्मीयताजन्य सेवा साधना के गुणो को विकासशील गती प्रदाण करता है।
सन्निहित शिक्षा को यज्ञोपवीत धागों से कन्धे पर, कलेजे पर, ह्रदय पर, पीठ पर प्रतिष्ठित करने से धागे धारक को यह जीवन-व्यवहार में उतारणे का स्मरण कराते रहते हैं।
This kind of education encourages self-discipline, increases social security and improves civil administration. It is a strict deterrent against social disorders. Sanskar is not merely a word but habit making in education.
Think, Understand and try to Adopt.